
प्राचीनता का भविष्य / Prachinta ka bhavishya (Hindi)
लद्दाख या "छोटा तिब्बत" की संस्कृति, परंपरा तथा परिवर्तनों पर एक चलता फिरता दर्पण है "प्राचीनता का भविष्य"। यह पुस्तक विकराल होती वैश्विक अर्थव्यवस्था की सच्चाई उजागर करने के साथ ही आर्थिक स्थानीकरण के पक्ष में समर्थन जुटाने की ज़रूरत के लिए अंतिम चेतावनी भी देती है।
1975 में, हेलेना नॉर्बर्ग-होज़ जब पहली बार लद्दाख़ आयी, तब परिवार एवं समुदाय स्वस्थ एवं सुदृढ़ थे, लोग सौम्य थे और अर्थव्यवस्था आत्मनिर्भर। फिर विकास की एक लहार आई । गत तीन दशकों से हिमालय का यह हिस्सा बाहरी बाजारों और पश्चिम आधारित प्रगति की चपेट में आ गया है। इसके नतीजे बड़े ही भयावह हैं - प्रदूषित हवा और पानी से लेकर खाने संबंधी विकार से लेकर सांप्रदायिक झगड़े - सब कुछ पहली बार।
लेकिन यह कहानी निराशा से दूर, आशा की ओर ले जाती है | हेलेना नॉर्बर्ग-होज़ का तर्क है कि यह सामाजिक और पर्यावरणीय विघटन न तो अपरिहार्य है और न ही क्रम-विकास की देन, अपितु एक सोची समझी चाल के तहत राजनीतिक और आर्थिक फैसलों का उत्पाद है। यह विश्वभर में चल रहे स्थानीकरण आंदोलनों के बारे में भी बतलाती है कि किस तरह उन्होंने शोषण की अर्थव्यवस्था को त्याग कर स्थान आधारित संस्कृति की और देखना शुरू कर दिया है, जो फिर से समुदाय को सुदृढ़ करने और प्रकृति से हमारे संबंधो को मजबूत बनाने का काम करती है।